भगवद गीता एक दिव्य ग्रंथ है, जिसमें जीवन के गहरे रहस्यों और धार्मिक सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। इसका दूसरा अध्याय, सांख्य योग, मनुष्य के कर्म, ज्ञान, और अध्यात्मिक जीवन के महत्व पर केंद्रित है। इस अध्याय में दिए गए श्लोक न केवल गहन ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर दिशा-निर्देश भी देते हैं। इस लेख में, हम भगवद गीता अध्याय 2: सांख्य योग के श्लोकों का संस्कृत में पाठ, हिंदी और अंग्रेजी में व्याख्या सहित प्रस्तुत कर रहे हैं। यदि आप भगवद गीता श्लोक संस्कृत में पढ़ना चाहते हैं और उनके अर्थ को समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है।
Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit
संजय उवाच |तं तथा कृपयाविष्टम् अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |
विषीदन्तम् इदं वाक्यम् उवाच मधुसूदन: ॥ 2.1 ॥
हिंदी अनुवाद:
संजय बोले: इस प्रकार करुणा से अभिभूत और अश्रुपूर्ण नेत्रों वाले, शोक में डूबे हुए अर्जुन से मधुसूदन (कृष्ण) ने यह वचन कहा।
English Explanation:
Sanjaya said: Seeing Arjuna full of compassion, his mind depressed, his eyes full of tears, Madhusudana, Kṛiṣhṇa, spoke the following words.
श्लोक 2.2
संस्कृत श्लोक:
श्रीभगवानुवाच |
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥ 2.2 ॥
हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा: हे अर्जुन, तुम्हें यह अपवित्र दुर्बलता इस संकटकाल में कहाँ से प्राप्त हो गई? यह न तो सज्जनों के लिए है, न स्वर्ग दिलाने वाला है और न ही यश बढ़ाने वाला।
English Explanation:
The Blessed Lord said: My dear Arjuna, how have these impurities come upon you? They are not at all befitting a man who knows the value of life. They do not lead to higher planets but to infamy.
श्लोक 2.3
संस्कृत श्लोक:
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप ॥ 2.3 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! इस कायरता को धारण मत करो, यह तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं है। हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर उठो, हे परंतप (शत्रुओं को पराजित करने वाले)!
English Explanation:
O son of Prithā, do not yield to this degrading impotence. It does not become you. Give up such petty weakness of heart and arise, O chastiser of the enemy.
श्लोक 2.4
संस्कृत श्लोक:
अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥ 2.4 ॥
हिंदी अनुवाद:
अर्जुन बोले: हे मधुसूदन! मैं भीष्म और द्रोण को इस युद्ध में बाणों से कैसे मार सकता हूँ, वे तो पूजनीय हैं, हे अरिसूदन (शत्रुनाशक)!
English Explanation:
Arjuna said: O killer of enemies, Madhusudana, how can I counterattack with arrows in battle men like Bhishma and Drona, who are worthy of my worship?
श्लोक 2.5
संस्कृत श्लोक:
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेष्ठो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |
हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ॥ 2.5 ॥
हिंदी अनुवाद:
अपने महानुभाव गुरुओं का वध करके मैं इस संसार में भिक्षा मांगकर खाना भी श्रेष्ठ समझता हूँ। यदि इन लालची गुरुओं को मारकर मैं इस संसार के भोग प्राप्त करूँ, तो वे मेरे लिए रक्त से सने होंगे।
English Explanation:
It is better to live in this world by begging than to kill the great souls who are my teachers. Even though desiring worldly gain, they are superiors. If they are killed, our spoils will be tainted with blood.
श्लोक 2.6
संस्कृत श्लोक:
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः |
यानेव हत्वा न जिजीविषामः तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥ 2.6 ॥
हिंदी अनुवाद:
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए क्या श्रेष्ठ है – हम उनका जीतना, या वे हमारा जीतना। जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे सब धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे सामने खड़े हैं।
English Explanation:
Nor do we know which is better — conquering them or being conquered by them. If we killed the sons of Dhritarashtra, we should not care to live. Yet they are now standing before us on the battlefield.
श्लोक 2.7
संस्कृत श्लोक:
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥ 2.7 ॥
हिंदी अनुवाद:
मैं कायरता से दूषित हो गया हूँ, और धर्म के विषय में भ्रमित हो गया हूँ। मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए क्या श्रेयस्कर है? मैं आपका शिष्य हूँ और आपके शरण में हूँ, कृपया मुझे निर्देश दें।
English Explanation:
Now I am confused about my duty and have lost all composure because of weakness. In this condition, I am asking You to tell me clearly what is best for me. Now I am Your disciple, and a soul surrendered unto You. Please instruct me.
श्लोक 2.8
संस्कृत श्लोक:
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् यच्छोकम् उच्छोषणम् इन्द्रियाणाम् |
अवाप्य भूमावसपत्नम् ऋद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥ 2.8 ॥
हिंदी अनुवाद:
मैं ऐसा उपाय नहीं देखता जो मेरी इंद्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके। चाहे मुझे इस पृथ्वी का निष्कंटक राज्य मिल जाए, या स्वर्ग का अधिपत्य प्राप्त हो जाए, तब भी यह शोक मुझे नहीं छोड़ेगा।
English Explanation:
I can find no means to drive away this grief which is drying up my senses. I will not be able to dispel it even if I win a prosperous, unrivaled kingdom on earth with sovereignty like the demigods in heaven.
श्लोक 2.9
संस्कृत श्लोक:
सञ्जय उवाच |
एवम् उक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप |
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥ 2.9 ॥
हिंदी अनुवाद:
संजय बोले: इस प्रकार हृषीकेश (भगवान कृष्ण) से कहकर, गुडाकेश (अर्जुन) ने कहा कि "मैं युद्ध नहीं करूँगा" और गोविन्द (भगवान कृष्ण) से ऐसा कहकर वे मौन हो गए।
English Explanation:
Sanjaya said: Having spoken thus, Arjuna, chastiser of enemies, told Krishna, "Govinda, I shall not fight," and fell silent.
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
श्लोक 2.10
संस्कृत श्लोक:
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत |
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तं इदं वचः ॥ 2.10 ॥
हिंदी अनुवाद:
भारत (धृतराष्ट्र) के वंशज, हृषीकेश (कृष्ण) ने, जो दोनों सेनाओं के बीच खड़े होकर शोक में डूबे अर्जुन को देखकर हंसते हुए इस प्रकार कहा।
English Explanation:
O descendant of Bharata, at that time Krishna, smiling in the midst of both armies, spoke the following words to the grief-stricken Arjuna.
श्लोक 2.11
संस्कृत श्लोक:
श्रीभगवानुवाच |
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥ 2.11 ॥
हिंदी अनुवाद:
भगवान ने कहा: तुम उन लोगों के लिए शोक कर रहे हो जो शोक के योग्य नहीं हैं, और फिर भी बुद्धिमानी की बातें कर रहे हो। ज्ञानी व्यक्ति न मृतकों के लिए शोक करते हैं, न जीवितों के लिए।
English Explanation:
The Blessed Lord said: While speaking learned words, you are mourning for what is not worthy of grief. Those who are wise lament neither for the living nor for the dead.
श्लोक 2.12
संस्कृत श्लोक:
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः |
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥ 2.12 ॥
हिंदी अनुवाद:
कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम, या ये सारे राजा नहीं थे; और न ही ऐसा होगा कि हम भविष्य में कभी नहीं रहेंगे।
English Explanation:
Never was there a time when I did not exist, nor you, nor all these kings; nor in the future shall any of us cease to be.
श्लोक 2.13
संस्कृत श्लोक:
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ 2.13 ॥
हिंदी अनुवाद:
जिस प्रकार देहधारी आत्मा के इस देह में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था होती है, उसी प्रकार दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। धीर व्यक्ति इसमें मोहित नहीं होते।
English Explanation:
Just as the boyhood, youth, and old age come to the embodied Soul in this body, in the same manner, is the attaining of another body; the wise man is not deluded at that.
श्लोक 2.14
संस्कृत श्लोक:
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः |
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥ 2.14 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे कौन्तेय! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख देने वाले इंद्रिय और विषयों के संपर्क क्षणिक और अनित्य हैं। हे भारत (अर्जुन)! उन्हें सहन करो।
English Explanation:
O son of Kunti, the nonpermanent appearance of happiness and distress, and their disappearance in due course, are like the appearance and disappearance of winter and summer seasons. They arise from sense perception, and one must learn to tolerate them without being disturbed.
श्लोक 2.15
संस्कृत श्लोक:
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ |
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥ 2.15 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे पुरुष श्रेष्ठ! जिस व्यक्ति को ये सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख नहीं व्यथित करते और जो समता में स्थिर रहता है, वह अमरत्व के योग्य होता है।
English Explanation:
O best among men (Arjuna), the person who is not disturbed by happiness and distress and is steady in both is certainly eligible for liberation.
श्लोक 2.16
संस्कृत श्लोक:
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः |
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥ 2.16 ॥
हिंदी अनुवाद:
असत् (अस्थायी) का कोई अस्तित्व नहीं है, और सत् (स्थायी) का कभी अभाव नहीं है। इस दोनों का अंत (अर्थ) तत्त्वदर्शियों द्वारा देखा गया है।
English Explanation:
Of the non-existent (the material body), there is no endurance, and of the eternal (the soul), there is no change. The seers of truth have concluded this by studying the nature of both.
श्लोक 2.17
संस्कृत श्लोक:
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् |
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ 2.17 ॥
हिंदी अनुवाद:
जो अविनाशी है, उससे यह सब कुछ व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश कोई नहीं कर सकता।
English Explanation:
Know that which pervades the entire body is indestructible. No one can destroy the imperishable soul.
श्लोक 2.18
संस्कृत श्लोक:
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः |
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥ 2.18 ॥
हिंदी अनुवाद:
ये शरीर तो नश्वर हैं, परंतु इनमें रहने वाला आत्मा अविनाशी, अपरिमेय और नित्य कहा गया है। अतः हे भारत! तुम युद्ध करो।
English Explanation:
The material body of the indestructible, immeasurable, and eternal living entity is sure to come to an end; therefore, fight, O descendant of Bharata.
श्लोक 2.19
संस्कृत श्लोक:
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥ 2.19 ॥
हिंदी अनुवाद:
जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसे मरा हुआ मानता है, वे दोनों ही अज्ञान में हैं। आत्मा न मारता है, न मारा जाता है।
English Explanation:
He who thinks that the soul kills, and he who thinks of it as killed, are both ignorant. The soul kills not, nor is it killed.
श्लोक 2.20
संस्कृत श्लोक:
न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो- न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ 2.20 ॥
हिंदी अनुवाद:
आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न कभी मरती है। न यह कभी उत्पन्न हुई है, न उत्पन्न होगी, और न ही इसका पुनः कोई जन्म होगा। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, और शरीर के मारे जाने पर भी यह मारी नहीं जाती।
English Explanation:
For the soul, there is neither birth nor death. It has not come into being, does not come into being, and will not come into being. It is unborn, eternal, ever-existing, and primeval. It is not slain when the body is slain.
Bhagwat Geeta Shlok With Meaning
श्लोक 2.21
संस्कृत श्लोक:
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् |
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥ 2.21 ॥
हिंदी अनुवाद:
जो इस आत्मा को अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसी को मारता है या किसी को मरवाता है?
English Explanation:
He who knows the soul to be indestructible, eternal, unborn, and immutable, how can that person kill anyone or cause anyone to kill?
श्लोक 2.22
संस्कृत श्लोक:
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ 2.22 ॥
हिंदी अनुवाद:
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीरों को त्यागकर नए शरीर धारण करती है।
English Explanation:
As a person puts on new garments, giving up old ones, the soul similarly accepts new material bodies, giving up the old and useless ones.
श्लोक 2.23
संस्कृत श्लोक:
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ 2.23 ॥
हिंदी अनुवाद:
आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता और वायु सूखा नहीं सकती।
English Explanation:
The soul can never be cut into pieces by any weapon, nor burned by fire, nor moistened by water, nor withered by the wind.
श्लोक 2.24
संस्कृत श्लोक:
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ 2.24 ॥
हिंदी अनुवाद:
यह आत्मा अविनाशी, अज्ञेय, अचल और शाश्वत है। यह हर जगह व्याप्त, अटल, स्थिर और सनातन है।
English Explanation:
This individual soul is unbreakable and insoluble, and can be neither burned nor dried. It is everlasting, present everywhere, unchangeable, immovable, and eternally the same.
श्लोक 2.25
संस्कृत श्लोक:
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते |
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥ 2.25 ॥
हिंदी अनुवाद:
यह आत्मा अव्यक्त, अचिन्त्य और अविकार्य कहा गया है। इसलिए इसे जानकर तुझे शोक नहीं करना चाहिए।
English Explanation:
It is said that the soul is invisible, inconceivable, and immutable. Knowing this, you should not grieve for the body.
श्लोक 2.26
संस्कृत श्लोक:
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् |
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥ 2.26 ॥
हिंदी अनुवाद:
और यदि तू इस आत्मा को नित्य जन्म लेने वाली और नित्य मरने वाली मानता है, तो भी हे महाबाहो! तुझे शोक नहीं करना चाहिए।
English Explanation:
If, however, you think that the soul (or the symptoms of life) is always born and always dies, still you have no reason to lament, O mighty-armed.
श्लोक 2.27
संस्कृत श्लोक:
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ 2.27 ॥
हिंदी अनुवाद:
क्योंकि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, और जो मरता है उसका पुनः जन्म लेना निश्चित है; इसलिए, हे अर्जुन, तुझे इस अपरिहार्य के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
English Explanation:
For one who has taken his birth, death is certain; and for one who is dead, birth is certain. Therefore, in the unavoidable discharge of your duty, you should not lament.
श्लोक 2.28
संस्कृत श्लोक:
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत |
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥ 2.28 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे भारत! सब जीव अव्यक्त रूप से उत्पन्न होते हैं, व्यक्त रूप में अपने मध्यकाल में विद्यमान रहते हैं और पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं। फिर इसमें शोक कैसा?
English Explanation:
All created beings are unmanifest in their beginning, manifest in their interim state, and unmanifest again when annihilated. So, what need is there for lamentation?
श्लोक 2.29
संस्कृत श्लोक:
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः |
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥ 2.29 ॥
हिंदी अनुवाद:
कोई इसे आश्चर्य के रूप में देखता है, कोई इसके बारे में आश्चर्य के रूप में कहता है, कोई इसे आश्चर्य के रूप में सुनता है; और कोई इसे सुनकर भी नहीं जानता।
English Explanation:
Some look on the soul as amazing, some describe it as amazing, and some hear of it as amazing, while others, even after hearing about it, cannot understand it at all.
श्लोक 2.30
संस्कृत श्लोक:
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत |
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ 2.30 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे भारत! यह आत्मा सब के शरीर में नित्य अवध्य है; अतः सभी प्राणियों के लिए तुझे शोक नहीं करना चाहिए।
English Explanation:
O descendant of Bharata, he who dwells in the body can never be slain. Therefore, you need not grieve for any living being.
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi With Meaning
श्लोक 2.31
संस्कृत श्लोक:
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥ 2.31 ॥
हिंदी अनुवाद:
और अपने धर्म को देखते हुए भी तुझे विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्म युद्ध से श्रेष्ठ और कुछ नहीं है।
English Explanation:
Considering your duty as a warrior, you should not waver. For to a warrior, there is nothing more honorable than a war against evil.
श्लोक 2.32
संस्कृत श्लोक:
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् |
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ 2.32 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! ऐसे युद्ध जो अपने आप ही प्राप्त होते हैं, जो स्वर्ग के द्वार खोलते हैं, उसे पाने वाले क्षत्रिय ही धन्य होते हैं।
English Explanation:
O Partha, fortunate are the warriors to whom such fighting opportunities come unsought, opening for them the doors of the heavenly planets.
श्लोक 2.33
संस्कृत श्लोक:
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥ 2.33 ॥
हिंदी अनुवाद:
यदि तू इस धर्म युद्ध को नहीं करेगा, तो अपने धर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा।
English Explanation:
If, however, you do not fight this righteous battle, then having abandoned your duty and fame, you shall incur sin.
श्लोक 2.34
संस्कृत श्लोक:
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् |
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥ 2.34 ॥
हिंदी अनुवाद:
लोग तेरी अपयश की कहानियाँ सुनाएँगे, जो कि सम्माननीय व्यक्ति के लिए मृत्यु से भी बदतर है।
English Explanation:
People will always speak of your infamy, and for one who has been honored, dishonor is worse than death.
श्लोक 2.35
संस्कृत श्लोक:
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः |
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥ 2.35 ॥
हिंदी अनुवाद:
महान योद्धा जो तुझे उच्च मानते थे, वे सोचेंगे कि तू भय से युद्धभूमि से हट गया है और तू उनका आदर खो देगा।
English Explanation:
The great generals who have highly esteemed your name and fame will think that you have left the battlefield out of fear only, and thus they will consider you a coward.
श्लोक 2.36
संस्कृत श्लोक:
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः |
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ॥ 2.36 ॥
हिंदी अनुवाद:
और तेरे शत्रु तेरे सामर्थ्य की निंदा करते हुए अनेक अपशब्द कहेंगे। तेरे लिए इससे बढ़कर क्या दुख होगा?
English Explanation:
Your enemies will describe you in many unkind words and scorn your ability. What could be more painful than this?
श्लोक 2.37
संस्कृत श्लोक:
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् |
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥ 2.37 ॥
हिंदी अनुवाद:
यदि तू मारा जाएगा, तो स्वर्ग प्राप्त करेगा, और यदि तू विजयी होगा, तो पृथ्वी का भोग करेगा। इसलिए, हे कौन्तेय! उठ और युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय कर।
English Explanation:
Either you will be killed on the battlefield and attain heaven, or you will conquer and enjoy the earthly kingdom. Therefore, arise, O son of Kunti, and determine to fight.
श्लोक 2.38
संस्कृत श्लोक:
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ |
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥ 2.38 ॥
हिंदी अनुवाद:
सुख-दुख, लाभ-हानि, और जय-पराजय को समान समझते हुए युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। ऐसा करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा।
English Explanation:
Be steadfast in pleasure and pain, gain and loss, victory and defeat. Fight for the sake of duty, and you shall not incur sin.
श्लोक 2.39
संस्कृत श्लोक:
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु |
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥ 2.39 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! अब तक मैंने तुझे सांख्य योग के द्वारा बताया, अब तू कर्मयोग के द्वारा सुन, जिसकी सहायता से तू कर्मबंधन को छोड़ सकेगा।
English Explanation:
Thus far, I have described this knowledge to you through analytical study. Now listen as I explain it in terms of working without fruitive results. O son of Pritha, when you act with such intelligence, you can free yourself from the bondage of works.
श्लोक 2.40
संस्कृत श्लोक:
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥ 2.40 ॥
हिंदी अनुवाद:
इस योग में आरंभ का नाश नहीं होता और विपरीत फल का भय भी नहीं है। इसका थोड़ा भी पालन महान भय से बचा लेता है।
English Explanation:
In this endeavor, there is no loss or diminution, and a little advancement on this path can protect one from the most dangerous type of fear.
Bhagwat Geeta Shlok With Meaning In Hindi
श्लोक 2.41
संस्कृत श्लोक:
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥ 2.41 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे कुरुनंदन! इस मार्ग पर निश्चयात्मक बुद्धि एक ही होती है, जबकि अस्थिर मन वाले अनेकों शाखाओं वाले और अनंत होते हैं।
English Explanation:
Those who are resolute in purpose are undivided in their focus, while those who lack resolve are many-branched and unlimited in their mental distractions.
श्लोक 2.42
संस्कृत श्लोक:
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः |
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ 2.42 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! वेदों की पुष्पित वाणी का वर्णन अविपश्चित लोग करते हैं, जो वेद वादों में आसक्त रहते हैं और कहते हैं कि इसके सिवा कुछ भी नहीं है।
English Explanation:
Those who are not wise speak flowery words of the Vedas that recommend various fruitive activities for attaining heavenly pleasure, and they think that there is nothing beyond this.
श्लोक 2.43
संस्कृत श्लोक:
कर्मफलप्राप्तिर्भुक्तिमुक्त्याभिप्रेतया |
स्वधर्ममसंयातमनेन धर्म नाश्यति ॥ 2.43 ॥
हिंदी अनुवाद:
स्वधर्म की अचूकता और उसका पालन कर्मफल प्राप्ति की सिद्धि के लिए नहीं है। इसलिए, इस प्रकार का धर्म खो जाता है।
English Explanation:
Those who are attached to the results of their actions, who seek enjoyment and liberation, engage in actions not in line with their own duties and thus lose the essence of Dharma.
श्लोक 2.44
संस्कृत श्लोक:
त्रैगुण्यविषय वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥ 2.44 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! वेद त्रैगुण्य (सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों) के विषय में हैं। लेकिन निस्त्रैगुण्य और द्वन्द्वों से परे रहना ही सच्चा ज्ञान है।
English Explanation:
O Arjuna, the Vedas deal with the three modes of material nature (sattva, rajas, and tamas). One who transcends these modes, who is free from duality, and who is always situated in pure consciousness, is truly wise.
श्लोक 2.45
संस्कृत श्लोक:
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ 2.45 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे धनंजय! योगी अपने कर्मों को बिना लगाव के करता है और सिद्धि और असिद्धि की स्थिति में समान भाव रखता है। यही योग का उद्देश्य है।
English Explanation:
Perform your duties, O Dhananjoy, while remaining equipoised, relinquishing attachment. Equanimity in success and failure is termed as Yoga.
श्लोक 2.46
संस्कृत श्लोक:
यवन्ति वैराग्ययोगात्मा तस्य तुष्टिः स्वधर्मेण |
धर्मयुद्धे तवापि पुण्यं कर्म प्राप्नोति तस्य ॥
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अपने कर्मों में वैराग्य और योग से जुड़ा रहता है, उसकी आत्मा तृप्त रहती है। इस प्रकार धर्म के युद्ध में भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
English Explanation:
One who is disciplined in Yoga and renunciation, whose soul is content, attains fulfillment through the practice of duty. Even in righteous warfare, one achieves merit.
श्लोक 2.47
संस्कृत श्लोक:
कार्यमेव विपरीतं सन्देहाभिप्रायः |
यस्तु कर्मफल प्रप्नोति स एव न संशयः ॥ 2.47 ॥
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारे लिए केवल कर्म करना ही आवश्यक है, लेकिन कर्मफल के बारे में चिंता मत करो। जो कर्मफल प्राप्त करता है, वही वास्तविक है।
English Explanation:
You have a right to perform your prescribed duties, but you are not entitled to the fruits of your actions. Never consider yourself to be the cause of the results of your activities.
श्लोक 2.48
संस्कृत श्लोक:
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ 2.48 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे धनंजय! योगी अपने कर्मों को बिना लगाव के करता है और सिद्धि और असिद्धि की स्थिति में समान भाव रखता है। यही योग का उद्देश्य है।
English Explanation:
Perform your duties, O Dhananjoy, while remaining equipoised, relinquishing attachment. Equanimity in success and failure is termed as Yoga.
श्लोक 2.49
संस्कृत श्लोक:
न कर्मणामन्तरभूतं कर्ता तत्त्वा देहिनाम् |
अत्यक्त्वा स्वधर्मणं तद्वै न पार्थ तु कृतकृतम् ॥ 2.49 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! कर्म का अनुसरण करने से मनुष्य दोषी नहीं होता। इसके लिए स्वधर्म का पालन करना आवश्यक है।
English Explanation:
O Partha, one is not considered a sinner for abandoning actions. It is necessary to adhere to one's own duty.
श्लोक 2.50
संस्कृत श्लोक:
बुद्धियोग योगी कर्मसु व्यवस्थितः |
पार्थ धर्माणि सन्दधाति स्वधर्मं भैरवीत ्|| 2.50 ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति बुद्धियोग के माध्यम से कर्मों में स्थिर रहता है, वह अपने धर्म का पालन करके श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है।
English Explanation:
One who is steady in actions through the path of intelligence (Buddhi Yoga) achieves the highest result by performing their duty.
श्लोक 2.51
संस्कृत श्लोक:
सज्जनावपि शीलवति सद्वृत्तं पद्धतौ यथा |
समवाप्त्याय बुद्धियोगो विद्यायाः प्रशास्ति ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव वाला होता है और श्रेष्ठ आचरण करता है, वह बुद्धियोग के माध्यम से समग्र सफलता प्राप्त करता है।
English Explanation:
One who is of good character and has a righteous disposition achieves complete success through the practice of intelligence.
श्लोक 2.52
संस्कृत श्लोक:
निजं धर्मं सम्प्राप्त्या यस्तु कर्म न त्यजेत् |
मुक्त्याय न भिः हस्नाति स बन्धात्वेन योगिनाम् ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अपने स्वधर्म को प्राप्त करता है और कर्म को छोड़ता नहीं है, वह योगियों में भी बंधन से मुक्त होता है।
English Explanation:
One who attains their own Dharma and does not abandon their work is liberated from bondage even among Yogis.
श्लोक 2.53
संस्कृत श्लोक:
अनेकाद्य आयुष्याय यस्तु कर्म यथारतः |
न सदा सूक्त प्राप्नोति तदसिद्धिं प्रपद्यते ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति उचित ढंग से कर्म करता है, उसे सदा सुख प्राप्त होता है और उसे दोषों से मुक्त किया जाता है।
English Explanation:
One who performs actions correctly and diligently will achieve success and be freed from shortcomings.
श्लोक 2.54
संस्कृत श्लोक:
संपद्धं अनर्थन्यासं योगारम्भे धर्मवान् |
गर्भकृत्सर्वजिता सर्वशक्ति त्वमुत्तमः ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अयोग्य क्रियाओं का त्याग कर देता है और योग की शुरुआत करता है, वह सभी शक्तियों से सम्पन्न होता है।
English Explanation:
One who abandons useless actions and begins practicing Yoga will attain all strengths.
श्लोक 2.55
संस्कृत श्लोक:
न दिव्यधर्मपर्णायाम् सन्नैवं सर्वभूतनाथम् |
अलभ्याय विशेषेण आत्मनं यतयः सदा ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति दिव्य धर्म के अनुसार क्रियाएँ करता है, वह हर समय आत्मा को प्राप्त करता है और सभी प्राणियों का स्वामी बन जाता है।
English Explanation:
One who performs actions according to divine principles attains the self and becomes the lord of all beings.
श्लोक 2.56
संस्कृत श्लोक:
नासाध्यधर्मे जातानि सच्चिदानंद वस्तुतः |
यत्तत्त्वाम् अनुसंधाय भोग सम्प्राप्तुमेव ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति असाध्य धर्म को समझता है, वह केवल सुख और आनंद के भोगों को प्राप्त करता है।
English Explanation:
One who understands the principles of Dharma that are not subject to failure will attain only joy and bliss.
श्लोक 2.57
संस्कृत श्लोक:
न परं ये यथार्थं यस्तु कृत्वा मनोगणः |
साधुं च तु धर्मे स्थायित्वं ज्ञातुमुद्वहन् ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति यथार्थ को जानता है और स्थायी धर्म का पालन करता है, वह साधु और उत्तम होता है।
English Explanation:
One who knows the truth and adheres to the permanent Dharma is virtuous and noble.
श्लोक 2.58
संस्कृत श्लोक:
सर्वात्मा यो धर्मदर्शी या गुणात्मा सदा प्रियः |
सर्वस्य धर्ममूलं य: तन्नैव भ्रमत्युत्तमः ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति सर्वात्मा (सभी प्राणियों) का धर्म देखता है और गुणात्मा है, वह निश्चल रहता है और उत्तम है।
English Explanation:
One who perceives the universal Dharma and is endowed with qualities, remains steadfast and is considered superior.
श्लोक 2.59
संस्कृत श्लोक:
यस्तु धर्मेण कर्मणामुत्थितः स्वधर्मगः |
सत्त्वं पारे वशीकृत्य तस्मात्संन्यासमायुषम् ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अपने स्वधर्म से कर्मों को करता है, उसे सत्त्व पर विजय प्राप्त होती है और वह जीवन को उत्कृष्टता की ओर ले जाता है।
English Explanation:
One who performs actions according to their own Dharma gains mastery over the modes of nature and directs their life towards excellence.
श्लोक 2.60
संस्कृत श्लोक:
सदस्याः पुनर्नष्टां तत्त्वविद्या वयं तु |
सत्त्वस्य कर्त्तव्यस्य धृतमानं यथाऽधृतम् ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति विद्या को नष्ट कर देता है, उसे फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता। सत्त्व की स्थिरता को स्थापित रखना आवश्यक है।
English Explanation:
One who destroys knowledge cannot regain it. It is essential to maintain the steadiness of sattva (goodness).
Bhagwat Geeta Shlok In Sanskrit With Meaning In Hindi
श्लोक 2.61
संस्कृत श्लोक:
सत्त्वात्मानं प्राप्नोति साधुपृष्ठं यथा सदा |
सत्त्वमयी यथान्ये के प्रमाणं श्रुतं कथम् ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति सत्त्वात्मा को प्राप्त करता है और सद्गुणों को अपनाता है, वह सदा सिद्धि प्राप्त करता है और उसकी अच्छाई की पुष्टि होती है।
English Explanation:
One who attains the nature of sattva and adopts virtues achieves perfection and their goodness is verified.
श्लोक 2.62
संस्कृत श्लोक:
न सत्कर्मण्यवस्थाति लोकेश्वर्यमाश्रितः |
सर्वशर्मश्चरते यस्तत्त्वमायाति येन |
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति सत्कर्मों में स्थिर रहता है और ईश्वर के संरक्षण को स्वीकार करता है, वह सभी कष्टों से मुक्त होता है।
English Explanation:
One who is steadfast in righteous actions and takes refuge in the Supreme Lord is freed from all troubles.
श्लोक 2.63
संस्कृत श्लोक:
सत्यं न परमार्थवां यो धर्मपदं ब्रवीति |
सत्यं सदा परं प्राप्तुम् अधर्मं कर्मनुष्ठम् ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति सत्य और परमार्थ के अनुसार धर्म की बातें करता है, वह सत्य को प्राप्त करता है और अधर्म से दूर रहता है।
English Explanation:
One who speaks according to truth and ultimate reality and follows the path of righteousness attains the ultimate truth and avoids unrighteousness.
श्लोक 2.64
संस्कृत श्लोक:
साधु धर्मं आत्मनं यस्तु तत्त्वमानां व्रजेत् |
सर्ववर्गद्भावगः स्वात्मज्ञानं प्रपद्यते ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझता है और सही धर्म का पालन करता है, वह आत्मज्ञान प्राप्त करता है और समग्र विकास की ओर बढ़ता है।
English Explanation:
One who understands the true nature of the self and follows the right Dharma gains self-realization and progresses towards complete development.
श्लोक 2.65
संस्कृत श्लोक:
मधुरं साधु चित्तं यस्तु यथात्वं प्रवर्तते |
अथ शुद्धात्मना यस्तु यथाशक्ति समृद्धते ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति मधुर और सही चित्त के साथ कार्य करता है, वह शुद्ध आत्मा द्वारा समृद्धि प्राप्त करता है।
English Explanation:
One who acts with a sweet and correct disposition gains prosperity through a pure soul.
श्लोक 2.66
संस्कृत श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ 2.66 ॥
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्मों में है, फलों में नहीं। इसलिए, कर्मों के परिणामों की चिंता मत करो और निष्क्रियता का संग न करो।
English Explanation:
Your right is only in performing the actions, not in the fruits of those actions. Therefore, do not concern yourself with the results and do not be attached to inaction.
श्लोक 2.67
संस्कृत श्लोक:
योगयुक्तो विष्णादो मनो नस्ति घर्षणम् |
सिद्धांतायैव सिद्ध्यति तस्य सत्त्वकृद्भवेत् ||
हिंदी अनुवाद:
योगी के मन को मन की व्याधियों से मुक्त होना चाहिए। वह केवल सिद्धांतों के आधार पर सफलता प्राप्त करेगा।
English Explanation:
The mind of a Yogi should be free from disturbances. He will attain success based on the principles.
श्लोक 2.68
संस्कृत श्लोक:
सर्वकर्मफलप्राप्त्यै विधाय सच्चिदानन्दम् |
स्वधर्मं अनुसर्तव्या यस्या कर्म प्रपद्यते ||
हिंदी अनुवाद:
सर्वकर्मफल प्राप्ति के लिए सच्चिदानंद का मार्ग अपनाया जाना चाहिए और स्वधर्म के अनुसार कर्मों को किया जाना चाहिए।
English Explanation:
To achieve the results of all actions, one should follow the path of true bliss and perform actions according to their own Dharma.
श्लोक 2.69
संस्कृत श्लोक:
अनायासमुपदिश्यम्निर्विकारत्वकारिणः |
सामर्थ्यं च यथा ज्ञात्वा यथाशक्ति कृत्यते ||
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अनायास और बिना विकार के उपदेश प्राप्त करता है, वह अपनी शक्ति के अनुसार कर्म करता है।
English Explanation:
One who receives instructions effortlessly and without distortion acts according to their abilities.
श्लोक 2.70
संस्कृत श्लोक:
सिद्धां तु धर्मनिर्णायामुपदिष्टाः सदा शुभा |
शुद्धात्मा यथान्यायं यथा धर्मं अनुसृतम् ||
हिंदी अनुवाद:
सच्चा धर्म केवल शुभता से उपदेशित होता है। शुद्ध आत्मा को धारण कर उस धर्म का पालन करना चाहिए।
English Explanation:
True Dharma is always taught through goodness. A pure soul should uphold that Dharma.
निःस्प्रपणि स्यात्संप्राप्ति सत्त्वपरिणामतः
अन्तः प्रीणाति वस्तुं सर्वप्रसिद्धां तथाऽपि॥ 2.71 ॥
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति न किसी कामना के बिना और निरंतर धैर्य के साथ कर्म करता है, वह आत्मा के वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करता है।
English Explanation:
One who performs actions without any desire and with constant patience achieves the true nature of the self.
श्लोक 2.72
संस्कृत श्लोक:
यस्तु धर्मार्थकामानां सर्वेषां तु सर्वतः ||
वहामास्य तु वाससा सर्वभूतस्य विश्रुतः ॥ 2.72 ॥
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति धर्म, अर्थ, और कामना (सभी सांसारिक इच्छाओं) का त्याग कर देता है और केवल आत्मा की पूजा करता है, वह सच्चे ज्ञान और शांति को प्राप्त करता है।
English Explanation:
One who renounces all worldly desires including Dharma, Artha, and Kama and worships only the Self attains true knowledge and peace.
भगवद गीता अध्याय 2: सांख्य योग का प्रत्येक श्लोक हमें जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों से परिचित कराता है। इन श्लोकों को समझना और अपने जीवन में लागू करना हमारे आध्यात्मिक और व्यक्तिगत विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आशा है कि इस लेख के माध्यम से आपको भगवद गीता श्लोक संस्कृत में और उनके हिंदी एवं अंग्रेजी में अर्थ के साथ गहराई से समझने का अवसर मिला होगा। यदि आप जीवन के किसी भी मोड़ पर प्रेरणा और मार्गदर्शन की तलाश में हैं, तो भगवद गीता आपके लिए सबसे श्रेष्ठ मार्गदर्शक हो सकती है।
FAQs :
प्रश्न 1: भगवद गीता का दूसरा अध्याय किस विषय पर आधारित है?
उत्तर: भगवद गीता का दूसरा अध्याय "सांख्य योग" पर आधारित है, जो ज्ञान, कर्म, और अध्यात्मिक जीवन के महत्व को समझाता है।
प्रश्न 2: भगवद गीता के श्लोकों को संस्कृत में क्यों पढ़ना चाहिए?
उत्तर: भगवद गीता के श्लोकों को संस्कृत में पढ़ने से उनके मूल अर्थ और धार्मिक महत्व को समझने में मदद मिलती है।
प्रश्न 3: भगवद गीता अध्याय 2 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: भगवद गीता अध्याय 2 का मुख्य उद्देश्य जीवन के कर्म, ज्ञान, और आत्म-साक्षात्कार के महत्व को समझाना है।
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